Last modified on 21 मई 2021, at 15:51

बन्धक चन्दन की सुवास / अनामिका सिंह 'अना'

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 21 मई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमने तुलसी चौरे मेटे
सींची नागफनी ।

देकर निर्वासन पुष्पों को
कृत्रिम इत्र मिले ।
बन्धक चन्दन की सुवास कर,
विषधर नहीं हिले ।
 
आँख कान की सन्दर्भों पर
सच से नहीं बनी ।

सद्भावों से रहे अपरिचित
ख़ुद के लिए जिए ।
आयातित यशमण्डन ख़ातिर ,
तलवे चूम लिए ।
  
रीढ़ झुका दी दरबारों में ,
जो कल रही तनी ।

रिश्तों के अंकुर झुलसाने,
मठ्ठा डाल दिया,
अन्तहीन लिप्सा के विष को
जीवन हेतु पिया ।

मूल्यों की लोलुपता ने की,
पग-पग राहजनी ।