भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमने कहा ... / विवेक चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:30, 27 मई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तपने तो लगी थी दोपहर चैत की
पर क्यों आज
ज़रा मुलायम सा लगा दिन

सुबह तुमने
धूप से
कुछ कहा था क्या ?