भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम कमाया हे / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 5 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणवीर सिंह दहिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यो घूंघट तार बगाया हे, खेता मैं ख़ूब कमाया हे,
खेलां मैं नाम कमाया हे, हम आगै बढ़ती जारी बेबे॥
1
लिबास पुर रोहनात गाम मैं बहादरी ख़ूब दिखाई बेबे
अंग्रेजां तै जीन्द की रानी नै ग़ज़ब करी लड़ाई बेबे
हमको दबाना चाहता हे, नहीं रस्ता सही दिखाया हे,
गया उल्टा सबक सिखाया हे, म्हारी खूबै अक्कल मारी बेबे॥
2
डांगर ढोर की सम्भाल करी धार काढ़ कै ल्याई बेबे
खूब बोल सहे हमनै स्कूलां मैं करी पढ़ाई बेबे
सब कुछ दा पै लाया देखो,
सबनै खवा कै खाया देखो, ना ग़म चेहरे पै आया देखो,
कदे हारी कदे बीमारी बेबे॥
3
नकल रोकती बहन सुशीला, जमा नहीं घबराई सै
मरकै करी हिफ़ाज़तअसूलां की नई राह दिखाई सै
गन्दी राजनीति साहमी आई,
औरतां पै श्यामत ढाई, फेर बी सै अलख जगाई,
देकै कुर्बानी भारी बेबे॥
4
लड़ती मरती पड़ती हम मैदाने जंग मैं डटती देखो
कायदे कानूनां तै आज म्हारी सरकार हटती देखो
हर महिला मैं लहर उठी,
हर गली और शहर उठी, सुबह शाम दोपहर उठी,
रणबीर की क़लम पुकारी बेबे॥