भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबुल बेटी विदा करे / संजीव 'शशि'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 7 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव 'शशि' |अनुवादक= |संग्रह=राज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पल-पल उठती हूक हृदय में,
नयनन नीर भरे।
बाबुल बेटी विदा करे॥

कानों गूँज रही शहनाई।
डोली द्वारे पर है आयी।
देख ज़िया था पल-पल जिसको।
अपनी अब हो चली परायी।
कोई तो बतलाये कैसे,
मनवा धीर धरे।

अनजाने पथ पर जायेगी।
जाने कब वापस आयेगी।
नव गृह, नव परिवेश मिलेगा।
जाने कैसे रह पायेगी।
कितना भी समझाये मन को,
फिर भी आज डरे।

बाबुल का अभिमान है बेटी।
बाबुल की पहचान है बेटी।
युगों-युगों से रीत यही है।
कुछ दिन की मेहमान है बेटी।
फिर भी चाहे मेरी बिटिया,
कुछ पल तो ठहरे।