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राधा बनना स्वीकार नहीं / संजीव 'शशि'

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सर्व समर्पण जब मेरा,
फिर क्यों पूरा अधिकार नहीं।
हे मोहन! फिर से मुझको,
राधा बनना स्वीकार नहीं॥

तुम्हें मिलन के मधुमय पल,
क्यों मेरे भाग्य प्रतीक्षा हो।
दोनों के पाने-खोने की,
फिर से गहन समीक्षा हो।
आखिर क्यों हैं भाग्य लिखे,
मेरे सोलह शृंगार नहीं।

प्रेम अमर है जन्म-जन्म तक,
कह मुझको बहलाओगे।
मुरली दे जाओगे लेकिन,
नहीं लौट कर आओगे।
जीवन भर जो दे पीड़ा,
तुम दो ऐसा उपहार नहीं।

मुझे कहोगे मुझसे पहले,
नाम तुम्हारा आयेगा।
युगों-युगों तक गीत-गीत में,
हमको गाया जायेगा।
नहीं मुझे बनना है पूज्या,
नारी हूँ अवतार नहीं।