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नेह की बदलियाँ / संजीव 'शशि'

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नेह बरसाने चलीं हैं,
नेह की ये बदलियाँ ।
ईश के वरदान जैसी,
हैं हमारी बेटियाँ।।

बेटियाँ होती नहीं वह,
घर कभी पूरा नहीं।
हो जहाँ पर वास इनका,
लक्ष्मी आतीं वहीं।
झूमतीं घर-आँगना में,
बाग में ज्यों तितलियाँ।।

शाम को बाहर से लौटूँ,
पाँव में लेकर थकन।
भूल जाता लाड़ली की,
जब मिले कोमल छुअन।
फेरतीं ममता भरी जब,
भाल पल पर वह उँगलियाँ।।

धैर्य की प्रतिबिम्ब हैं यह,
मुस्कुरा सुख-दुख सहें।
जिस तरह माँ-बाप रक्खें,
उस तरह रहतीं रहें ।।
मुस्कुराहट में छुपाये,
अपने मन की मर्जियाँ।।