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लाड़ली फिर क्यों जली / संजीव 'शशि'
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क्या नहीं तुमने दिया,
फिर भी नहीं होनी टली।
धर हृदय पर हाथ सोचो,
लाड़ली फिर क्यों जली।।
कामना हर सुख मिले, सपने यही बुनते रहे।
वह चले जिस राह पर, काँटे सदा चुनते रहे।
गोद में जिसको खिलाया,
थाम जो उँगली चली।
इस दहेज के वृक्ष को, आपने रोपित किया।
दोष किसको आप देंगे, आपने पोषित किया।
आग के दामन में धर दी,
आपने कोमल कली।
नींव में संबंध की, धन को धरा था आपने।
देख लो परिणाम कैसा, आपके है सामने।
था कभी डोली बिठाया,
आज अर्थी पर चली।