भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीज की चाह / मेराज रज़ा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 18 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेराज रज़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दाना हूँ मैं नन्हा-मुन्ना,
मिट्टी में हूँ गड़ा-गड़ा!
कैसी होगी दुनिया बाहर,
सोच रहा हूँ पड़ा-पड़ा!
मीठा-मीठा पानी पीकर,
अंकुर मैं बन जाऊँ!
बढ़िया खाद मिले तो खाकर,
खिल-खिलकर मुस्काऊँ!
बाहर आकर धीरे-धीरे,
बड़ा पेड़ बन जाऊँ!
नीले-नीले अंबर नीचे,
हवा संग लहराऊँ!
नन्हीं चिड़िया मेरे ऊपर,
अपना नीड़ बनाए!
सुंदर मीठे गीत सुनाकर,
मेरा मन बहलाए!
तपती गर्मी से थककर जब,
राहगीर भी आए!
शीतल-शीतल छाया पाकर,
खुश तुरंत हो जाए!
तेज हवा के झोंके खाकर,
मीठे फल बरसाऊँ!
मेरे पास चले जब आओ,
तुमको ख़ूब खिलाऊँ!