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बुढ़िया के बाल / मेराज रज़ा

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खा लो, खा लो, जी भर खा लो,
मिठाई बेमिसाल।

घूम-घूम घिरनी से निकली,
मुँह में जाते ही मैं पिघली।
देखो, तो स्पंज लगूँ मैं,
रंग गुलाबी-लाल।

गली-मुहल्ले में जब जाऊँ,
सब बच्चों को मैं ललचाऊँ।
हल्की हूँ मैं रुई सरीखी,
रेशा-रेशा जाल।

मज़ेदार हूँ मैं खाने में,
चीनी मेरे हर दाने में।
हवा-मिठाई कह लो मुझको,
या बुढ़िया के बाल।