भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्राण-शिल्पी / विमलेश शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 20 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ऋण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी आँखें
एक बादल है इस क्षण

कोई समीरण का झोंका
मुझे धुन में बहा
तुम तक पहुँचाता है

कोयल वेणु-बंध स्वर
अस्थिर हो
बेधता है प्रभात को
और
मैं टूटकर बिखरता हूँ
ज्यों जाग्रत प्राण!