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गतिवान / सुदर्शन रत्नाकर

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कितनी रातें मैंने
वैसे ही गुज़ार दीं
तुम्हारे इंतज़ार में
न चाँदनी ही पी सका
न तारों की छटा देखी
नदियाँ यूँ ही बहती रही
रुकी नहीं मेरे साथ
वह रुकती भी क्यों
मैं ही गतिवान नहीं था।