भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ट्रेफ़िक सिगनल / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक ख़ास
ट्रेफ़िक सिग्नल पे
ट्यून करते थे हम
अपना एफ एम रेडियो
एक ख़ास सिग्नल पे
एक बच्चा
थपथपाता था
मेरी कार का शीशा
चुल्लू के इशारे से
भीक में मांगता था
पीने का पानी अक्सर
एक ख़ास सिग्नल पे
रोते हुये बेचती थी
एक बूढ़ी औरत
हंसती हुई गुड़िया कभी
रंगीन ग़ुब्बारे कभी
और एल.इ.डी. लाइट से
जगमगाते
करताब दिखाते
खिलौने कभी
लोग
खिलौने लिये बग़ैर
अश्कों की क़ीमत
चुका कर निकल जाते थे
खिलौने फिर भी
इस बूढी औरत के हाथ में
हर रोज़ बदल जाते थे
सोचता हूँ
अब ये बूढी औरत
बचे खुचे खिलौनों से
उम्मीद लगाये
कहीं बैठी होगी
जाने किस हाल में
रहती होगी॥