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लौट के श्रमिक घर को आये / पंछी जालौनवी

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जैसे तैसे जान बचा के
जान से अपनी
पहचान बढ़ा के
घर तक पहुँचे हैं
ख़ौफ़ को सबने
मिलजुल कर
आपस में बांट लिया है
अब जो होगा देखा जायेगा
राशन पानी का
बंदोबस्त सोचा जायेगा
अपनी मेहनत के
बल बूते पर
शहर गये थे
अपनी हिम्मत के संग
वापस आये हैं
गर्द-ए-सफ़र को
उतार के कपड़े
किसी नाले में
झाड़ आये हैं
लौट के श्रमिक
घर को आये हैं॥