Last modified on 24 जून 2021, at 22:15

लौट के श्रमिक घर को आये / पंछी जालौनवी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जैसे तैसे जान बचा के
जान से अपनी
पहचान बढ़ा के
घर तक पहुँचे हैं
ख़ौफ़ को सबने
मिलजुल कर
आपस में बांट लिया है
अब जो होगा देखा जायेगा
राशन पानी का
बंदोबस्त सोचा जायेगा
अपनी मेहनत के
बल बूते पर
शहर गये थे
अपनी हिम्मत के संग
वापस आये हैं
गर्द-ए-सफ़र को
उतार के कपड़े
किसी नाले में
झाड़ आये हैं
लौट के श्रमिक
घर को आये हैं॥