Last modified on 24 जून 2021, at 22:19

हर रोज़ की तरह / पंछी जालौनवी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हर रोज़ तरह आज भी
सूरज खिड़की पर
एक नई सुब्ह लिये खड़ा था
हर रोज़ तरह
आज भी
बनफ़शी ख़्वाबों का हाथ थामे
ज़रुरत ने दिन तमाम किया
हर रोज़ तरह
आज भी
कहीं से धुआं उठा
कोई चीख़ दबी
कोई ख़ामोश हो गया
हर रोज़ तरह
बदन से इजाज़त लिये बग़ैर
आज भी
कई लोग रुख़्सत
हर रोज़ तरह
आज भी॥