ख़्वाहिशों को बिन समझाये
समझ में आ गई हर बात
ज़रुरत लेकिन अनपढ़ जाहिल
दिखलाये अपनी औक़ात
तंगदस्ती ने क़दम निकाले
छुपा के शर्मिंदा सी जेबें
फैला के ख़ाली हाथ
तरस भी खाये कोई यहां पे
कोई उड़ाये मज़ाक़
हर तरह के लोग हैं बस्ती में
इसी का नाम है दुनियां
चाय शक्कर दाल चावल
हल्दी मिर्ची और धनियां
ऊंचे दामों में
बेच रहा है
मेरी गली का बनियां ॥