Last modified on 4 अगस्त 2021, at 22:15

निकल पड़े चींटी के पर / श्रवण कुमार सेठ

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 4 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रवण कुमार सेठ |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निकल पड़े चींटी के पर
उड़ती है वो फर-फर-फर
दिन भर फूलों पे मडराये
तितली,भौंरों को चिढ़ाये
उड़े गांव वह उड़े शहर
निकल पड़े चींटी के पर

लेकर चीनी के वह दाने
उड़ जाती है पेड़ पे खाने
मौज मनाती है दिन भर
निकल पड़े चींटी के पर

पैरों तले कुचल जाती थी
अक्सर वो मसल जाती थी
उसे नहीं अब इसका डर
निकल पड़े चींटी के पर

सरक के पेड़ के पत्ते से
कल आई है कलकत्ते से
अब सारी दुनिया उसका घर
निकल पड़े चींटी के पर