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भारी बस्ता / श्रवण कुमार सेठ

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बस्ता मेरा बहुत है भारी
करता मेरी रोज सवारी
बढ़ने देता नहीं है आगे
कमर झुकी मेरी बेचारी

पीठ मेरी दुखती है हरदम
दुखता मेरा कंधा
गले में लटके वाटर बॉटल
जैसे कोई फंदा

कभी किसी को नहीं दिखाई
देता मेरा बस्ता
मेरे खस्ते हाल पे केवल रोता
मेरा रस्ता।