भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्धेरा कितना कुछ कहता है / अर्चना लार्क
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:16, 12 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना लार्क |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अन्धेरे की पदचाप
सुनी है कभी
महीन सी ध्वनि होती है
जिसमें मिलन का उत्साह
बिछोह का क्रन्दन
एक लम्बी चुप्पी और गहरा रास्ता
जो दिखाई नहीं सुनाई देता है
अन्धेरा कितना कुछ कहता है
पर क्या सब
दर्ज़ हो पाता है !