भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरवाज़े फिर से गदराई ऋतुगन्धा / रामचन्द्र ’चन्द्र भूषण’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:05, 13 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामचन्द्र ’चन्द्र भूषण’ |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दरवाज़े फिर से
गदराई ऋतुगन्धा
चितवनिया
सुमिरन में बीत गई
छलकन में
गागरिया रीत गई
खाती हिचकोले
सरगम की सारन्धा ।
विजनवती
थालियाँ परोस रही
किरन-फूल
जूड़े में खोंस रही
पाकर वरमाल
झुका गेहूँ का कन्धा ।