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मृत्यु अचानक नहीं आती / अर्चना लार्क

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वक़्त की मार अन्तर्मन को निचोड़ लेती है
कुछ बातें खौलती ही नहीं, हौलती हैं
और जीना मुहाल कर देती हैं

कितना ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी जीना
बचपन को छुपते देखना
सबकुछ बदलते देखना

कितना कुछ हो जाता है
और कुछ भी नहीं होता

अभिनय सटीक हो जाता है
सपाटबयानी विपरीत

दिशाएँ बदल जाती हैं
रात से सुबह
सुबह से रात हो जाती है

पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती तटस्थ सी हो जाती है !

समय सिखाता है गले की नसों को आँसुओं से भरना
और एकान्त में घूँट-घूँटकर पीना

कितना कुछ पीना होता है
कितना कुछ सीना होता है

जीवन में तुरपाई करते गाँठ पड़ जाती है
ये सीवन उधड़ने पर ही पता चलता है

जीवन दिखता है
और जीना नहीं हो पाता है.
कितना कुछ घट जाता है
शोर बढ़ता ही जाता है ।

बुढ़ापे की लकीर और गहरी होती जाती है ।