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ध्वनिहीन कक्ष / नजवान दरविश / श्रीविलास सिंह
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वह अब लटका है लकड़ी के एक टुकड़े पर
और मैं, बस, चीख़ ही सकता हूँ
इन कक्षों में नहीं प्रेवश कर सकती कोई आवाज
वह लटका है अब लकड़ी के एक टुकड़े पर
रात और दिन
जाड़े और गर्मी में
हवा में, आग में, धरती और जल में
अन्धेरे में और प्रकाश में
वह लटका है अब
दुनिया लटकी है लकड़ी के एक टुकड़े पर
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह