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भागो ! / नजवान दरविश / श्रीविलास सिंह

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मैंने सुनी एक आवाज :

भागो !
और छोड़ दो पीछे यह अँग्रेज़ी द्वीप
तुम्हारी नहीं है कोई चीज़ सिवाय इस सजावटी रेडिओ के
सिवाय इस कॉफ़ी के पात्र के
सिवाय रेशमी आकाश के समक्ष खड़े बाग़ीचे के वृक्षों के

मैं सुनता हूँ आवाज़ें उन भाषाओँ में
जो मैं जानता हूँ
और अन्य जिन्हें मैं नहीं जानता :

भागो !
और छोड़ दो पीछे खण्डहर लाल बसों को
जंग लगी रेल लाइनों को
सुबह के कामों के प्रति आसक्त इस राष्ट्र को
इस परिवार को जो लटकाता है पूंजीवाद की तस्वीर अपनी बैठक में
मानो यह हो उसका कोई पूर्वज

पलायन करो इस द्वीप से
तुम्हारे पीछे हैं मात्र खिड़कियाँ
खिड़कियाँ वहाँ तक
जहाँ तक देख सकते हो तुम
खिड़कियाँ दिन के प्रकाश में
खिड़कियाँ रात्रि में
 
बदरंग पक्ष चमकीली पीड़ा के
चमकीली पीड़ा के बदरंग पक्ष
और तुम सुनते हो आवाज़ : भागो !
शहर की तमाम भाषाओँ में,

रहवासी भाग रहे हैं अपने बचपन के स्वप्नों से
उपनिवेशों के घावों से
जो बदल गए हैं
ठण्डे हस्ताक्षरों में अपने रचयिताओं के मरने के पश्चात्

पलायन करते लोग भूल चुके हैं
कि वे भाग रहे हैं किस चीज़ से,
अत्यन्त कायरता से अब पार करते गलियाँ
वे जुटाते हैं अपनी सारी कायरता और चीख़ते हैं :

भागो !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह