भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किराए का कमरा / जू लिझी / तनुज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:55, 16 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जू लिझी |अनुवादक=तनुज |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लगभग दस वर्ग मीटर का
यह तंग और गीला कमरा
साल भर कोई धूप नहीं ।
यहीं सोता हूँ,
खाता हूँ,
मल-मूत्र त्यागता हूँ,
खाँसता हूँ –
यहीं पर उठता है सिरदर्द…
यहीं होता हूँ बूढ़ा,
और बीमार पड़ता हूँ ।
हलकी पीली रोशनी के भीतर
स्तब्ध होकर ताकता रहता हूँ,
कुड़कुड़ाता हूँ हर वक़्त —
किसी चूतिये की तरह
नरमी से गाता हुआ,
कविता लिखता हुआ,
मैं धीरे-धीरे क़दम बढ़ाता हूंँ
कुछ दूर आगे,
फिर हट जाता हूँ पीछे…
हमेशा जब भी खोलता हूँ मैं
अपने कमरे की खिड़की
या इसका कमज़ोर दरवाज़ा,
मुझमें दिखता है
एक मुर्दा —
जो खोल रहा है धीरे-धीरे
अपने ताबूत का ढक्कन …
अँग्रेज़ी से अनुवाद : तनुज