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ईश्वर की तरह प्रेम / शिरीष कुमार मौर्य

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किसी ऋतु के
न आने की पीड़ा
और उस ऋतु में
चले जाने की

विकट आवश्यकता के होने से
आदमी पर्वत उठा लेता है
कानी उंगुली पर
निज बालक को
पालता हो जैसे

ऋतुओं के निकट सान्निध्य में
एक अंधा भक्त कवि
ईश्वर को पालता है ऐेसे
मैंने ईश्वर को नहीं
ईश्वर की तरह

प्रेम को बसाना चाहा है
अपने भीतर
और चहुँओर जो कीच मचा है
मेरी देह जो लिथड़ी है

समकालीन प्रसंगों में
किसी आने वाली ऋतु में धुल जाएगी
किसी आने वाली ऋतु में जल होगा
सिर्फ़ मेरे लिए

किसी आने वाली ऋतु में अग्नि होगी
सिर्फ़ मेरे लिए
रितुरैण होगा
सिर्फ़ मेरे लिए
जिसे
एक स्त्री उम्र भर गाएगी