भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल को भाती नहीं कोई सूरत / कनुप्रिया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 31 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कनुप्रिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिल को भाती नहीं कोई सूरत ।
ना किसी तौर ना किसी सूरत ।
तेरे चेहरे में देखती हूँ मैं
इश्क़ होने की आख़िरी सूरत ।
आप किस डर से डर गए साहब
मेरी सूरत है आपकी सूरत ।
हिज़्र की आँख वस्ल के सपने
है मुहब्बत की दोगली सूरत ।
तुम कोई और पेश आते हो
और होते हो और ही सूरत ।
इश्क़ में जिस्म तो ज़रूरी है
इश्क़ आता है जिस्म की सूरत ।