बावरा साजन / रचना उनियाल
सावन में बदरा जो झलका, बदली भी मुस्काई।
सुधियों के व्याकुल आँगन में, नयन धार कतराई।।
झूम रही मदमस्त घटा को,
रूप लुभाता तेरा।
विरहन सी चुपचाप निहारूँ,
आघातों का घेरा।।
मतवारा प्रेमी आवारा, बलमा है हरजाई।
सुधियों के व्याकुल आँगन में, नयन धार कतराई।
घनमाला के मेघपुष्प में,
बसती मेरी काया।
रूप पयोधर का ही निखरे,
छोड़ी अपनी छाया।।
प्राप्त किया जब लक्ष्य सुधा रस, सुध मेरी बिसराई।
सुधियों के व्याकुल आँगन में, नयन धार कतराई।
अंबर के अँगना में प्रियतम,
बसा संग था सारा।
श्रद्धा निष्ठा अरु यकीन का,
गिरता रहा सितारा।।
पावस से जीवन में अब तो, स्वाभिमान गहराई।
सुधियों के व्याकुल आँगन में, नयन धार कतराई।
निर्बल नाजुक नहीं निरक्षर,
नवजीवन की नारी।
आशा की गति में वह बहती,
मत कहना बेचारी।।
मनोरथों के रथ में चढ़कर, आज छुये ऊँचाई।
सुधियों के व्याकुल आँगन में, नयन धार कतराई।