भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोकिल ! / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 20 सितम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=दरिया...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोकिल !
विकृत स्वरों में नहीं बोलता,
पर जब भी बोलता है
पञ्चम में बोलता है,
उसकी आवाज़ में पैनी मिठास होती है,
मिठास में तेज़ लय होती है,
कोकिल !
लय की ख़ूबियों को जानता है,
इन स्वरों को
शब्दों से पहले पहचानता है ।
कोकिल !
छप्पर या मुण्डेर पर
उठाईगीरों की तरह नहीं बैठता