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मन- त्रिंजण / हरदीप कौर सन्धु

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मन- त्रिंजण
लो तेरी याद आई
हँसी तन्हाई
22
तिरती रही
बैठ यादों की नाव
तुम्हारे संग
23
यादें झूमर
नाचे सजाके माथे
मन- मयूर
24
कुछ पिघला
जाग गईं सुधियाँ
आँखें सजल
25
मन पहुँचा-
यादों के पंख लगा
गाँव -आँगन
26
पाखी हैं यादें
मन खुला आसमाँ
उड़ी ये कहाँ
27
खुशबू बन
महके है बिटिया
घर- आँगन
28
बिटिया होती
फूल- पँखुरियों पे
ओस के मोती
29
नन्ही -सी परी
वो घुँघरू की मीठी
रुनझुन- सी
30
माँ के आँगन
फूलों जैसी बिटिया
दिव्य सर्जना