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मेरे भीतर प्रेम / प्रमिला वर्मा

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मेरे हृदय के भीतर
चहुँ ओर प्रकाश छा रहा है
मेरे भीतर की हर श्वास
सुगंध मयी हो उठी है
मेरी चेतना का अंतर तल परिधान बदल रहा है।
सुबह की धूप की तरह आलोकित हो रहे हैं।
मन, प्राण
कहीं तुम छुपे तो नहीं हो
प्रेम
बाहर आने को उद्वेलित
आओ
तोड़ दो सारे बंधन
समा जाओ मुझ में
प्रेम।