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स्मृति में अटका एकदिन / प्रमिला वर्मा
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शाम ढले,
उजालों का अंधेरे की ओर बढ़ना।
और फिर,
सियाह होता अंधेरा।
बार-बार उन्हीं अंधेरी पगडंडियों पर
लौट पड़ने का मन होना।
जहाँ उजली सफेद चांदनी में,
तुम साथ थे।
अवश हाथों से,
यादों को पकड़ लेना।
और
यादों के जंगल से
एक "याद" को चुन लेना।
यहीं कहीं टूट जाना।
यादों के भ्रम जाल से,
"पीड़ा" को,
हृदय में गहरे धंसते,
महसूस करते जाना।