भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और फिर तुम्हारी याद / विजय कुमार सप्पत्ति

Kavita Kosh से
Arti Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:14, 17 नवम्बर 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक छोटा सा धुप का टुकड़ा
अचानक ही फटा हुआ आकाश
बेहिसाब बरसती बारिश की कुछ बूंदे
और तुम्हारे जिस्म की सोंधी सुगंध
...और फिर तुम्हारी याद


उजले चाँद की बैचेनी
अनजान तारो की जगमगाहट
बहती नदी का रुकना
और रुके हुए जीवन का बहना
...और फिर तुम्हारी याद

टूटे हुए खपरैल के घर
राह देखती कच्ची सड़क
टुटा हुआ एक पुराना मंदिर
और रूठा हुआ कोई देवता
...और फिर तुम्हारी याद

आज एक नाम ख़ुदा का
और आज एक नाम तेरा
आज एक नाम मेरा भी
और फिर एक नाम इश्क का
...और फिर तुम्हारी याद