भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लिहौरा / त्रिलोकीनाथ दिवाकर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 18 नवम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोकीनाथ दिवाकर |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लिहौरा करै छिहौं ते सिंगरै छो
बालू के भीतो रंग मिंघरै छो
भोथो छूरी भोथो कैची
बिना पिजैनें चींरगै छो,
लिहौरा करै छिहौं ते सिंगरै छोे।
आपन्है मँुहों में आपनो मिट्ठो
उठतें-बैठतें लै छिहौ नाम
कुच्छू कहै छिहौं तिरगैं छो,
लिहौरा करै छिहौं ते सिंगरै छो।
घमंड नै करो तों अपना पर
राखो गुणों के झपना तर
दोसरा चुल्हा पर खरगैं छो,
लिहौरा करै छिहौं ते सिंगरै छो।