भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:37, 28 नवम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत फेकोॅ जानी के पानी
राखोॅ खुच्चों खान्हीं-खन्हीं
दिक्कत होला से पहिनें सब
चलॉे बचाबॉे कनकन पानी।

जब भी पीयोॅ छानी-छानी
खूब सीसोहोॅ टटका पानी
नो बजथैं सूतै के घरिया
तानोॅ पहिनें मच्छरदानी।