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आशंकाएँ / सिल्विया प्लाथ / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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एक सफ़ेद दीवार, जिसके ऊपर आसमां खुद को सँवारता है —
असीम, हरा, और जिसे छूना कतई मुमकिन नहीं ।
फ़रिश्ते वहाँ तैरते हैं, और सितारे, बेख़बर भी ।
वे हैं मेरा माध्यम ।
सूरज ग़ायब हो जाता है इस दीवार में, रिसती है उसकी रोशनी ।

अब एक भूरी दीवार, पंजों में क़ैद और लहुलुहान ।
क्या ज़ेहन से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं ?
पदचाप मेरी रीढ़ से कुएँ में उतरते हुए ।
इस दुनिया में कोई दरख़्त या परिन्दा नहीं,
सिर्फ़ खट्टापन ।

यह लाल दीवार सिकुड़ती जाती है लगातार :
एक लाल मुट्ठी, खुलती और भिंचती हुई,
दो भूरे, कागज़ी थैले —
इसी से मैं बनी हूँ, और यह दहशत
सलीब और ममता की बारिश के बीच लुढ़काया जाऐगा मुझे ।

एक काली दीवार पर अनजाने परिन्दे
चकराते सिर उनके और चीख़ते हैं वे ।
अनैतिकता की बातें वे नहीं करते !
एक ठण्डा सूनापन रेंगता है हमारी ओर :
बढ़ता आता है जल्दबाज़ी के साथ ।

मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य