और कुछ सोचने लगा शायद
मैं उसे भूलने लगा शायद
क्यों मुझे घेरती है तनहाई
मुझसे कुछ छूटने लगा शायद
जिसपे उम्मीद लहलहाती थी
पेड़ वो सूखने लगा शायद
छोड़कर राह में मुझे तनहा
चाँद भी लौटने लगा शायद
अपनी सच बोलने की आदत से
मैं भी अब ऊबने लगा शायद