Last modified on 18 दिसम्बर 2021, at 22:52

अन्धेरा / नीलमणि फूकन / दिनकर कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 18 दिसम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नीलमणि फूकन |अनुवादक= दिनकर कुमा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतने दिनों तक
लौटकर नहीं आए

श्याम वर्ण के
नाविकों की बातें
हम कर रहे थे

फैलाए गए
केले के पत्तों से
ओस की तरह

बून्द-बून्द
अन्धेरा टपक रहा था ।

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार