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मारुनी नाचको गीत / केदार गुरुङ
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धर्ती हाम्रो भान्से आमा
आकाश हाम्रो पिता-पुरखा
सूर्य, तारा दाज्यू-भाइ
प्रकृति हुन दिदी-बहिनी
सपनीमा के देख्यो-देख्यो हो
ब्यूँझी नाच्यो हाम्री मारुनी
सारा धर्ती थर्कीआयो
किरातेश्वरले ताण्डव रचायो
ब्यूँझिए सारा पशु-पक्षी
रमाइ उठ्यो सारा प्रकृति
वारि झलल पारि झलल
चारैतिर बल्न थाल्यो बत्ती झलल
नाच्दै आयो ढँटुबारे बल्ल-बल्ल
हाँस्न थाले सबै गलल।