भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़ोन /अवधेश कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश कुमार |संग्रह=जिप्सी लड़की / अवधेश कुमार }} ...)
नौमंज़िला इमारत चढ़ने में लगता है समय
जितना कि नौमंज़िला कविता लिखने में नहीं लगता ।
नौ मंज़िल चढ़कर मिला मैं जिस आदमी से
उससे मिला था मैं ज़मीन पर अपने बचपन में ।
वहीं पर उससे दोस्ती हुई थी।
इतनी दूर-
और नौ मंज़िल ऊपर
नहीं मिल पाता जब मैं उस दोस्त से : वह मुझे
जब बहुत दिनों बाद मिलता है
तो पूछता है कि
क्यों नहीं कर लिया मैंने उसको फ़ोन ?