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आओ हिंदुस्तान चलें / प्रशान्त 'बेबार'

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आओ!
तुम चलो, हम चलें
करते सब नमन चलें
शाख़-शाख़ सब्ज़ कर
घास के महल चलें

माँग में 'डल' बहे
धरती पे स्वर्ग रहे
कहवा में लेके प्यार
हिम के यूँ शहर चलें

रीत को बनाके गीत
मेहमान को बनाके मीत
सहरा पे वक़्त ओढ़कर
रेत के शजर चलें

लहरों की प्यास बाँटकर
सागर से मोती छाँटकर
शंख का पकड़ के हाथ
साहिल-ओ-सफ़र चलें

रूखा सा है जो पठार
है ज़िन्दगी की ये पुकार
लेके दिल में हौसला
कठोर सी डगर चलें

ज़ेहन में छुपी याद है
जज़ीरे ऐसी जात है
पानी पे यूँ तैरते
कबीलों के नगर चलें

रंगों का रुख़ मोड़कर
ज़बाँ का तार तोड़कर
ख़ुदा की जंग छोड़कर
बस आदमी के घर चलें

तुम चलो, हम चलें
करते सब नमन चलें
लेके हाथ साथ साथ
हिन्द की नज़र चलें।