भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वृद्धाश्रम / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:03, 18 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दो वक्त
जबरन प्रार्थना करनी पड़ती है यहाँ
छोटे वृद्धाश्रमों में खुद
अपनाकाम करना पड़ता है
बड़ेमें वर्दीवाले सहायक होते हैं
जन्मदिन मनाने आते परिवारवालों में
बेटे और बहुओं को ढूँढते वृद्धों के
मुस्कुराते चेहरों में छिपी उदासी को
कैद नहीं कर सकता कोई केमरा
खाते खिलाते
समय बिताकर , फोटो खिंचवाकर
चले जाते मेहमान
दूसरे दिन
ईश्वर की प्रशंसा में
थरथरातीआवाज में प्रार्थना कर
अपने- अपने प्लेट ले खड़े है पंक्ति में ये वृद्ध
नाश्ता करने पर
फिर वही उदासी वही बेचैनी
हॉल के सन्नाटे को
चीरती है किसी की खाँसी, किसी का रूदन