भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाँव में पिता / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 31 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गाँव में पिता
लाठी टेकते हुए चलते
धीमे से
शाम को मैदान के पास
पीपल के पेड़ के तले
जवानी की कहानियाँ कह सुन
ठहाकार मारकर हँसते
हम उम्र के साथ
एक दिन अचानक
तबीयत बिगड़ी
जमादार ने बिस्तर बिछाकर दिया
रिक्शेवाले ने दवाई खरीद कर दी
पड़ोसी ने रोटी सिंकवाकर दी
टूटे खपरैल के घर में
रहते थे अकेले ………