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गाँव में पिता / संतोष अलेक्स

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गाँव में पिता
लाठी टेकते हुए चलते
धीमे से

शाम को मैदान के पास
पीपल के पेड़ के तले
जवानी की कहानियाँ कह सुन
ठहाकार मारकर हँसते
हम उम्र के साथ

एक दिन अचानक
त‍बीयत बिगड़ी
जमादार ने बिस्‍तर बिछाकर दिया
रिक्‍शेवाले ने दवाई खरीद कर दी
पड़ोसी ने रोटी सिंकवाकर दी
टूटे खपरैल के घर में
रहते थे अकेले ………