भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलते-चलते राह में / प्रवीण कुमार अंशुमान

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 11 अप्रैल 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रवीण कुमार अंशुमान |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलते-चलते राह में
अचानक वह मिल गयी थी एक दिन,
देखते ही देखते
उसने पकड़ लिया था मेरा हाथ,
मगर फिर जल्दी ही
ऐसा वक्त भी साथी आया,
जब वो दूर चली गयी मुझसे
सच में दूर बहुत दूर
मगर फिर भी आज,
जब कभी भी मैं अपने हाथ पर
अपनी नजरें घुमाता हूँ,
यह देखकर
बड़ा ही अक्सर
बहुत ही हर्षित हो जाता हूँ
कि उसकी उंगलियां
मेरी उंगलियों के बीच
आज भी ठीक वैसे ही
फँसी पड़ी हैं,
जैसे पहली मुलाकात में
उसने मेरी उंगलियों से
अपनी उंगलियों को मिलाया था
आज मुझको समझ आया है
कि उसने मेरे संग अनंतकाल का
एक अद्भुत रिश्ता बनाया था ।