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एक देवी / मनोज जैन 'मधुर'
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एक देवी
अँजुरी भर
जल समर्पित कर रही है ।
भावना के
विविधवर्णी
पुष्प अर्पित कर रही है ।
हे दयानिधि दीन दुनिया
फूलती
फलती रहे ।
हों सभी निर्भय, निरामय
कामना
पलती रहे ।
दीप श्रद्धा
का तुम्हारी
देहरी पर धर रही है ।
एक देवी
अँजुरी भर
जल समर्पित कर रही है ।
सूर्य जल लो नेह रींधा
सजल
यह धरती रहे ।
धान्य धन से, सम्पदा से
सर्वदा
भरती रहे ।
अर्घ्य दे
उत्साह मन में नित्य नूतन
भर रही है ।
हों सुखी सब
देह धारी
मन सभी के फूल हों ।
प्रार्थना को
मान दे दो
लाख चाहे भूल हों ।
माथ पर रजकण
लगाकर
चाँदनी-सी झर रही है ।
एक देवी
अँजुरी भर
जल समर्पित कर रही है ।