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कैसा है भाई / मनोज जैन 'मधुर'
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कैसा है भाई
बैठ गया
आँगन में
कुंडलिया मार।
गिरगिट से ले
आया रंग
सब उधार।
हक़ मांगो
दिखलाता
कुआँ कभी खाई।
कैसा है भाई।
चूस रहा
रिश्तों को
बन कर के जोंक।
जब चाहे
बन जाता
चाकू की नोंक।
घूरता है
जैसे
अज को कसाई।
बदला सा
रूप देख
कांप रहा गेह।
लील गया
पुरखों का
जन्मों का नेह।
लेना हो
एक तो
बसूलता अढाई।