भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गन्दा पानी / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |संग्रह=भूमिकाएँ खत्म नहीं ह...)
थके भारी बस्ते से
कल शाम फिर बाहर कूदा आर्कमिडीज
और दोहराने लगा
अपना सिद्धान्त
आज सुबह
एक बहुत अच्छी कविता पढ़ी थी मैंने
जितने भर में छपी है कविता
क्या उतना गन्दा पानी
छँटा होगा ?