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प्रिये! हमारी सुस्मृतियों की / प्रभात पटेल पथिक

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प्रिये! हमारी सु-स्मृतियों की जीवनियाँ जब मुद्रित होंगी
जाने क्या जग मुद्रित कर दे, जाने क्या-क्या न कर पाए।

ये संदेशों की मधु-लड़ियाँ, जो हम-तुम है नित्य बनाते!
मन-सागर के मधुर तीर पर, चित्र बिना औचित्य बनाते!
दिव्य-प्रेम से रहा अनछुआ, ये जग जाने क्या लिख देगा।
अपनी प्रेम कहानी में कोई अध्याय नया लिख देगा!
जाने क्या इन पृष्ठों से प्रिय! तुम्हे न भाए, हमें न भाए!
प्रिये! ।

जगत् तुम्हारी मधु-मुस्कानों का जाने क्या मोल लगाए।
आजीवन हम जिन्हें सुस्मिते! एक घड़ी भी भूल न पाए।
बाट हमारी तकना अनथक, कभी देहरी या फिर छत से
और मुझे सम्मुख पाकर के, लज्जामय होना, मुख नत-से!
नैन बसे प्रिय-प्रेमालय को, जाने कैसे जग दर्शाए?
प्रिये! ।

गद्य तुम्हारे, पद्य हमारे, किंतु भाव दोनों में सम हैं!
ज्यों गीतों की गंग, कथा-कालिंदी का पावन संगम हैं!
हम दोनों का लक्ष्य एक है! प्रेम-उदधि हित जीवन अर्पित।
और पुनः प्रेमिल-उत्सर्जन से जग पले-बढ़े, हो हर्षित!
मधुरे! द्वय के उभय-लक्ष्य को, जाने कितना जग अपनाए?

प्रिये! हमारी सु-स्मृतियों की जीवनियाँ जब मुद्रित होंगी
जाने क्या जग मुद्रित कर दे, जाने क्या-क्या न कर पाए!