Last modified on 3 नवम्बर 2008, at 20:20

मिट्ठू हमारे घर में / हरीशचन्द्र पाण्डे

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |संग्रह=भूमिकाएँ खत्म नहीं ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाहर गये हुए हैं पड़ोसी
हफ़्ते भर से मेरे घर में है पड़ोसी का मिट्ठू

चहक उठा है घर

जो दिन भर चुप्प रहा करता था वह गाना गा रहा है उसके लिए
जो बात करने के नाम पर काटने दौड़ता था वह
सीटी सिखा रहा है
घर से निकलते वक़्त सब कहने लगे हैं
अच्छा मिट्ठू जा रहा हूँ
टूटा है पिता का लम्बा अबोल
उन्होंने आज बेटा कहा है मिट्ठू से

किसके पास कितनी मिठास बची है अभी भी
सब खोल के रख दिया है मिट्ठू ने