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आस्था - 17 / हरबिन्दर सिंह गिल

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मानवता में आस्था
एक परम आनंद की
अनुभूति देता है
उसमें सुगंध आती है
श्रद्धा के फूलों की
क्योंकि
इसी माँ की गोद में
सो रहे हैं
हमारे अपने पूर्वज।

परंतु आज का मानव
अपनी ही
संतान के मोह में
इतना खो गया है
कि वह पूर्वज तो दूर
स्वयं को भी भूल गया है।

शायद यह
पूर्वजों की दुआओं का
अभाव ही है
कि मानव
माँ-बाप होते हुए भी
अनाथ होकर रह गया है।