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आस्था - 21 / हरबिन्दर सिंह गिल

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प्रकृति
यह तेरा कसूर है
मैं तेरे
सितारों की झिलमिलाहट
और
चांद की चांदनी की
प्रशंसा
तो करता हूँ
परंतु
सूर्य की किरणों से
मुझे घृणा है
क्योंकि
वह मानव की आँखों को
रौशनी तो दे सकती है
परंतु
उसके हृदय को
जहाँ से लेते हैं, जन्म
हीन विचार
मानव के
मानवता के लिये
नहीं कर सकी है
जलाकर नष्ट उन्हें।