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आस्था - 28 / हरबिन्दर सिंह गिल

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इन चीखों और सिसकियों से
मानवता कहीं दम न तोड़ दे
चिंतन अपने पीछे
शब्दों का खजाना
छोड़ देना चाहता है
ताकि
एक प्रार्थना जन्म ले सके
जो मातृभूमि के नाम पर
उभरती सीमाओं की
संकीर्णता से, बहुत दूर
मानवता के लिये
पूर्णतः समर्पित हो।

प्रार्थना जिसकी आस्था
अहं से ज्यादा
समर्पित भावनाओं से परिपूर्ण हो।
यह समर्पित भावना ही
शब्दों को एक दिन
ऐसी पुष्प-माला का स्वरूप देगी
जिससे मातृभूमि के नाम पर
दिन-प्रतिदिन
बहती खून की नदियां
अमृत-रूपी समुद्र में
हो सकें सम्मिलित।